प्रदोष व्रत का महत्व
प्रत्येक पक्ष में दो बार प्रदोष व्रत रखा जाता है। मान्यता है प्रदोष व्रत रखने से भगवान शिव की विशेष कृपा की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा के अनुसार सबसे पहले प्रदोष व्रत चंद्रदेव ने रखना प्रारंभ किया था। मान्यता है कि भगवान शिव के शाप को कारण चंद्रमा को क्षय रोग हो गया था। तब इस शाप से मुक्ति पाने के लिए चंद्रदेव ने हर महीने आने वाले त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत रखना आरंभ कर दिया था। इस व्रत को करने से भगवान शिव चंद्रदेव पर प्रसन्न होकर उन्हें क्षय रोग से मुक्ति मिल थी। मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती प्रदोष व्रत रखने वालों की हर मनोकामना की पूर्ति करते हैं।
प्रदोष व्रत पूजा विधि
- त्रयोदशी तिथि को प्रातः उठकर स्नानादि करके दीपक प्रज्वलित करके व्रत का संकल्प लेते हैं।
- पूरे दिन व्रत करने के बाद प्रदोष काल में किसी मंदिर में जाकर पूजन करना चाहिए।
- यदि मंदिर नहीं जा सकते तो घर के पूजा स्थल या स्वच्छ स्थान पर शिवलिंग स्थापित करके पूजन करना चाहिए
- शिवलिंग पर दूध, दही, शहद, घी व गंगाजल से अभिषेक करना चाहिए।
- धूप-दीप फल-फूल, नैवेद्य आदि से विधिवत् पूजन करना चाहिए।
- पूजन और अभिषेक के दौरान शिव जी के पंचाक्षरी मंत्र नमः शिवाय का जाप करते रहें।